#National

ऑपरेशन सिंदूर से धुआं-धुआं हो गई पाक के परमाणु हथियारों की धौंस – Operation Sindoor and The Myth of Nuclear Deterrence ntcprr

Spread the love


पिछले कई दशकों से दुनिया को ये थकाऊ कहानी सुनाई जा रही है कि न्यूक्लियर हथियार ही भारत और पाकिस्तान के बीच फुल वॉर को रोकते हैं. सीधी-सी बात है  दोनों देशों के पास इतने न्यूक्लियर हथियार हैं कि एक-दूसरे को तबाह कर सकते हैं, तो ऐसे में कोई भी पहले हमला करने की हिम्मत नहीं करेगा.

लेकिन एक बार फिर भारत ने पाकिस्तान के न्यूक्लियर धमकी को नजरअंदाज करते हुए बड़ी हिम्मत दिखाई है. भारत ने पाकिस्तान के अंदर जाकर आतंकवादी कैंपों पर जोरदार हमले किए हैं. इस बार बात सिर्फ 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक या फिर 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक तक नहीं रही. बल्कि भारतीय एयरफोर्स ने पाकिस्तान के पंजाब इलाके में भी स्ट्राइक की, जहां पाकिस्तान को उम्मीद नहीं थी कि भारत कभी हमला कर सकता है.

अगर पाकिस्तान की आर्मी को लगता है कि उनके न्यूक्लियर हथियार उन्हें आतंक फैलाने की फ्री पास दे देते हैं, तो उन्हें अब अपनी ये सोच बदल लेने की जरूरत है. SIPRI की 2024 रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के पास करीब 170 न्यूक्लियर हथियार हैं और भारत के पास भी लगभग उतने ही, मतलब खतरा बहुत बड़ा है. लेकिन फिर भी भारत का आतंक के अड्डों पर हमला साफ दिखाता है कि मोदी सरकार की स्ट्रैटजी अब भी वही है.  अगर पाकिस्तान की आर्मी को भारत के न्यूक्लियर पावर से डर नहीं लग रहा, तो फिर भारत को भी अपने हाथ बांधकर बैठने की क्या जरूरत है?

पाकिस्तान की भारत से खत्म ना होने वाली दुश्मनी

1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ, तभी से पाकिस्तान को जैसे भारत से आगे निकलने की एक अजीब-सी सनक लगी हुई है. लेकिन सच्चाई ये है कि हर बार उसे सिर्फ मुंह की खानी पड़ी है. 1947-48 की जंग में कश्मीर को लेकर पाकिस्तान ने हमला किया, लेकिन सिर्फ एक छोटा-सा हिस्सा (जो अब POK कहा जाता है) ही कब्जा कर पाया. 1965 की जंग में पाक के मंसूबे बुरी तरह से फ्लॉप रहे. पाकिस्तान का ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ उसी के घमंड के नीचे दब गया.

1971 की जंग तो पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ी हार साबित हुई. ‘दो देशों का सिद्धांत’ यानी टू-नेशन थ्योरी ने एक नया ही आशय ले लिया – एक और देश बन गया, नाम था बांग्लादेश. फिर आया 1999 का करगिल युद्ध, जहां पाकिस्तान ने चोरी-छिपे भारत की जमीन में घुसपैठ की, लेकिन जब भारत ने जोरदार जवाब दिया तो उसे शर्मनाक तरीके से पीछे हटना पड़ा.

इतने झटके खाने के बाद तो किसी को तो समझ आ जाना चाहिए, लेकिन पाकिस्तान की आर्मी जैसे हर बार एक ऐसी लड़ाई छेड़ने का शौक रखती है, जो वो कभी जीत ही नहीं सकती. पिछले कुछ दशकों में पाकिस्तान ने सीधी जंग छोड़कर आतंक के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है. उसने लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे आतंकी संगठनों को बढ़ावा दिया है, ताकि वो भारत के खिलाफ छुपकर जंग छेड़ सके.

इन आतंकी संगठनों को पाकिस्तान की ISI यानी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस का पूरा सपोर्ट मिलता है. ये वही लोग हैं, जो 2001 में संसद पर हमला और 2008 में मुंबई हमलों जैसे बड़े आतंकी हमलों के पीछे थे. लगता है पाकिस्तान की फौज ने आतंक फैलाना अपना पर्सनल स्टाइल बना लिया है.

अब बहुत हो गया..

पहलगाम में टूरिस्टों पर हुए हमले के बाद भारत अब पाकिस्तान की घिसी-पिटी कहानी सुनने के मूड में नहीं था. 6 और 7 मई की रात को भारतीय एयरफोर्स ने ड्रोन और स्पेशल फोर्सेस के साथ मिलकर POK और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद आतंकी ठिकानों पर एक के बाद एक सटीक हमले किए. इन हमलों में मसूद अजहर और हाफिज सईद के ट्रेनिंग कैंप, कमांड सेंटर और मदरसे शामिल थे.

ऑपरेशन इतनी तेजी से हुआ कि पाकिस्तान की एयर डिफेंस कुछ समझ ही नहीं पाई. सुबह होते-होते सारे कैंप जलकर राख हो चुके थे. भारत ने साफ कर दिया कि ये स्ट्राइक ‘नपी-तुली, बिना उकसावे वाली, संतुलित और जिम्मेदाराना थीं.

पारंपरिक ताकत का संदेश

ये स्ट्राइक भारत की कोल्ड स्टार्ट डोक्ट्रिन का एकदम सटीक उदाहरण थीं. ये स्ट्रैटजी इस तरह से बनाई गई है कि पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियारों की सीमा पार किए बिना, बहुत तेज और सख्त जवाब दिया जा सके. 2000 के दशक की शुरुआत में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान ये योजना बनी थी. इसमें भारत 48 घंटे के अंदर अपनी आर्मी यूनिट्स को हमले के लिए तैयार कर सकता है और पाकिस्तान के काफी अंदर तक टारगेट्स को हिट कर सकता है.  वो भी इस तरह कि जंग न्यूक्लियर लेवल तक न पहुंचे. इसे ऐसे समझिए जैसे कोई आपके घर आए, आपकी सबसे प्यारी चीज़ तोड़ दे और जाते-जाते एक नोट छोड़ जाए – ‘तुम इसी लायक हो, लेकिन इसे फिलहाल यहीं तक रहने देते हैं.’

ऑपरेशन का सबसे खास हिस्सा

भारत ने इस ऑपरेशन का मैसेज देश और दुनिया को देने के लिए दो महिला अफसरों को विदेश सचिव विक्रम मिसरी के साथ आगे किया. यानी ‘सिंदूर’ थीम को और मजबूत किया गया. जिस तरह नवविवाहिता हिमांशी नरवाल अपने शहीद पति के शव के पास खामोशी से रोती दिखीं, वो पहलगाम की ट्रैजेडी का चेहरा बन गईं. उसी तरह कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह इस ऑपरेशन का चेहरा बन गईं, न्याय का चेहरा.

एक ऐसा ऑपरेशन जिसका नाम हिंदू प्रतीक पर रखा गया हो और उसे एक मुस्लिम महिला ने लीड किया हो. ये दिखाता है कि भारत में एकजुटता क्या होती है. वो एकजुटता, जिसे पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद तोड़ने की कोशिश कर रहा था.

दुनिया का सबसे महंगा पेपरवेट?

पाकिस्तान के पास करीब 170 न्यूक्लियर हथियार हैं और वही उसकी पूरी डिफेंस पॉलिसी की नींव माना जाता है. भारत की तरह पाकिस्तान के पास कोई ‘नो-फर्स्ट-यूज’ (यानि पहले न्यूक्लियर अटैक ना करने का वादा) जैसी पॉलिसी नहीं है. उल्टा, पाकिस्तान ने साफ कहा है कि अगर उसे लगे कि उसकी सलामती को खतरा है, तो वो पहले न्यूक्लियर हमला कर सकता है.

ये ‘अब नहीं किया तो फिर आगे भी नहीं कर पाएंगे’ वाली सोच इसलिए है ताकि भारत अपने बड़ी सेना, ताकतवर एयरफोर्स और स्ट्रॉन्ग नेवी के दम पर पाकिस्तान पर हमला करने की हिम्मत ना कर पाए. पाकिस्तान को डर है कि भारत उसके कोस्टलाइन को ब्लॉक कर सकता है और उसके सिस्टम को पूरी तरह से पंगु बना सकता है.

लेकिन सच्चाई ये है कि इन न्यूक्लियर हथियारों के बावजूद भारत ने बार-बार आतंक के जवाब में सख्त एक्शन लिया है. 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक और अब 2025 का ऑपरेशन सिंदूर – ये सब दिखाते हैं कि भारत अब पाकिस्तान की न्यूक्लियर धमकी से डरता नहीं है.

पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियार अब डराने का हथियार कम और आतंकियों को बचाने की ढाल ज्यादा लगते हैं. पाकिस्तान की फौज इन्हीं धमकियों के पीछे छिपकर आतंकियों को पालने-पोसने और उन्हें हथियार देने का खेल खेलती रहती है. दूसरी तरफ भारत का न्यूक्लियर रवैया काफी शांत और जिम्मेदाराना रहा है. भारत की ‘नो-फर्स्ट-यूज’ पॉलिसी और ‘क्रेडिबल मिनिमम डिटरेंस’ यानी जितना जरूरी हो, उतनी ही ताकत लगाने की नीति, बताती है कि भारत शांति और संतुलन बनाए रखना चाहता है.

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने ये भी दिखा दिया कि भारत की असली ताकत उसके पारंपरिक हथियारों और फौज में है – जो बिना न्यूक्लियर हथियार चलाए भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे सकती है. 

डराने का नया तरीका

अगर पाकिस्तान की फौज के सपोर्ट से चलने वाले आतंकी संगठन इस भरोसे पर काम करते रहें कि भारत न्यूक्लियर जंग के डर से कुछ नहीं करेगा, तो फिर ‘डिटरेंस’ यानी डर का कांसेप्ट ही फेल हो गया. भारत की स्ट्राइक ने ये साफ कर दिया है कि अगर सटीक प्लानिंग और थोड़ा साहस हो तो बिना न्यूक्लियर धमाके के, फौजी ताकत से भी बड़े खतरे को खत्म किया जा सकता है. पाकिस्तान की फौज के जनरल्स को ये समझ लेना चाहिए, लेकिन लगता है वो अभी भी DHA के कोने वाले प्लॉट के फेर में ही खोए हुए हैं.

किसी बड़ी जंग को रोकने में न्यूक्लियर हथियारों का रोल अब भी हो सकता है. लेकिन, जहां बात आतंकवाद रोकने की है, वहां भारत का जवाब अब एकदम साफ है – ‘फ्लावर समझा था क्या? फायर हूं मैं.’ पाकिस्तान को अब ये सोचना पड़ेगा कि ये आतंक फैलाने का खेल वाकई में उसके लिए कितना फायदेमंद है. शायद अब वक्त आ गया है कि वो खुद से पूछे – ये खेल आग लगाने लायक भी है या नहीं.

(कमलेश सिंह, कॉलमनिस्ट और व्यंगकार हैं. वे इंडिया टुडे डिजिटल विंग के न्यूज डायरेक्टर हैं. यह लेखक के निजी विचार हैं.)



Source link

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

onabet é confiavel