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न्याय और बदले में क्या अंतर है? जानिए- लोगों में ‘आंख के बदले आंख’ वाली सोच क्यों बढ़ रही – What is the difference between justice and revenge know psychology behind it ntcpmm

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आंख के बदले आंख मांगोगे तो पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी…महात्मा गांधी का यह कथन भी बदले की भावना से भरे किसी व्यक्त‍ि को समझ नहीं आएगा. जब भी किसी न‍िर्दोष पर जुल्म होता है तो लोग बदले की आग में झुलसने लगते हैं. उदाहरण के लिए पहलगाम की आतंकी घटना, जिसमें क्रूर आतंकियों ने कश्मीर घूमने गए लोगों को उनका धर्म पूछकर पत्नी और बच्चों के सामने गोली मार दी.इस घटना ने पूरे देश को आक्रोश‍ित कर दिया था. इसके बाद लोगों में जो भावना जागी, वो क्या न्याय पाने की भावना थी या  पूरी तरह से बदले की ख्वाहिश, क्यों इंड‍िया में आतंकी घटनाओं को लेकर लोगों में बदले की भावना ज्यादा बढ़ी है. आइए समझते हैं इसके पीछे का मनोव‍िज्ञान…

मनोव‍िश्लेषक डॉ सत्यकांत त्र‍िवेदी कहते हैं कि मनोविज्ञान के नजरिए से बदले की भावना इंसान की बुनियादी प्रवृत्ति से जुड़ी है. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जे. रे डेनिसन अपनी किताब The Psychology of Revenge में लिखते हैं कि जब इंसान को लगता है कि उसके या उसकी कम्युन‍िटी या देशवासी के साथ अन्याय हुआ है तो उसका दिमाग तुरंत प्रतिक्रिया करता है. यह प्रतिक्रिया डोपामाइन और कोर्टिसोल जैसे हार्मोन्स के स्राव से प्रेरित होती है जो गुस्सा और तनाव पैदा करते हैं. बदला लेने की सोच इंसान को तात्कालिक संतुष्टि देती है क्योंकि यही सोच दिमाग को भरोसा दिलाती है कि उसे इसी से संतुष्टि‍ मिलेगी. 

वहीं बदले की भावना को सभ्यता के विकास के साथ ही समाज ने न्याय (Justice) में ढाला है. न्याय दरअसल एक ऐसा संतुलित सोच समझकर लिया गया फ़ैसला है जो समाज के नियम-कानूनों और नैतिकता पर आधारित होता है. हर अपराध की एक तय सजा है. इससे व्यक्त‍ि को संस्थागत तरीके से दोषी को दंड‍ित कराकर संतुष्ट‍ि मिलती है. वहीं, बदला (Revenge) भावनाओं में बहकर क्रोध में आकर किया गया वह कृत्य है जिसमें संतुलन नहीं बल्कि जुर्म के बदले के लिए एक जुर्म करना होता है. 

भारत-पाकिस्तान मामले में लोग बदले की तरफ क्यों झुक रहे हैं?

अब सवाल उठता है कि भारत पाकिस्तान के मामले में भी लोग बदले की भावना से क्यों भरे रहते हैं. बरसों से आतंक का दंश झेल रहा भारत पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी घटनाओं से मन ही मन गुस्से और आक्रोश से भर चुका है.1947 की बंटवारे की त्रासदी से लेकर कश्मीर विवाद, 1971 का युद्ध और इसके बाद आतंकी हमलों की लंबी फेहरिस्त, हर घटना ने लोगों में गुस्से और बदले की भावना को बढ़ाया है. जब पाकिस्तान की ओर से सीमा पर गोलीबारी या ड्रोन हमले होते हैं तो भारत की जनता में उबाल आता है. सोशल मीडिया पर  ‘पाकिस्तान को सबक सिखाओ’ जैसे नारे ट्रेंड करने लगते हैं. इसके पीछे कुछ कारण और भी हैं… 

पाकिस्तान का दोहरा चेहरा 
भारत-पाकिस्तान के तनाव में बदले का मनोविज्ञान साफ इसल‍िए द‍िखता है क्योंकि पाकिस्तान ने हमेशा आतंकवाद को लेकर कभी सख्त कार्रवाई नहीं की. चाहे वो बंबई के होटल ताज की घटना हो, कंधार प्लेन हाईजैक हो या फिर संसद में अटैक, पाकिस्तान हमेशा सबूतों से मुकर गया.पाकिस्तान से आने वाले वीड‍ियोज में हमेशा साफ हुआ कि आतंकी पाकिस्तान में बाकायदा अपने टेरर कैंप चला रहे हैं. आईएसआई उनका सपोर्ट कर रही है. 

अब एक्शन चाहती है जनता 
अब भारत सरकार भी पाकिस्तान के इस रवैये से खफा नजर आती है. यही कारण है कि जब 2019 में पुलवामा हमले में 40 से ज्यादा भारतीय जवान शहीद हुए तो भारत ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक कर जवाब दिया. इस कार्रवाई को जनता ने खूब सराहा क्योंकि ये बदले की भावना को शांत करने का एक तरीका था. सच पूछा जाए तो ये स्थायी समाधान नहीं बन सका. इसके बाद भी सीमा पर तनाव कम नहीं हुआ. मनोवैज्ञानिक डॉ. व‍िध‍ि एम पिलन‍िया कहती हैं कि बदला एक ऐसा चक्र है जो कभी खत्म नहीं होता. एक पक्ष बदला लेता है तो दूसरा पक्ष और बड़ा कृत्य करने की ठान लेता है. इसका स्थायी समाधान ही एक हल है. 

न्याय का रास्ता क्यों मुश्किल?
इसके बाद न्याय की प्रक्रिया धीमी और जटिल होती है. इसमें देश का कानून, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय दबाव की भूमिका होती है. भारत ने कई बार संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर घेरने की कोशिश की लेकिन इसका असर सीमित रहा. दूसरी ओर सैन्य कार्रवाइयां तुरंत नतीजे देती दिखती हैं जिससे जनता का गुस्सा शांत होता है. यही वजह है कि सरकारें भी कई बार ‘आंख के बदले आंख’ की नीति पर चल पड़ती हैं. 

सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
हमारे लोककथाओं, फिल्मों और कहानियों में हीरो को अंत में विलेन से बदला लेते दिखाया जाता है. ये हमारी सोच में बैठ चुका है कि बदला लेना ही बहादुरी है. भारत और पाकिस्तान में बदले की भावना को मीडिया और सिनेमा ने भी बढ़ावा दिया है. सोशल मीडिया ने इस आग में घी डालने का काम किया है. जब भारतीय सेना ने हाल ही में पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर हमला किया तो ट्विटर पर #IndiaStrikesBack जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे. दूसरी ओर पाकिस्तान में भी भारत विरोधी नारे वायरल हुए. यह दिखाता है कि दोनों देशों की जनता में बदले की भावना कितनी गहरी है. 

पीड़ा की पहचान से जुड़ा भ्रम
डॉ सत्यकांत कहते हैं क‍ि जब किसी को पीड़ा होती है तो उसे लगता है कि दूसरा भी वही पीड़ा सहे तभी न्याय होगा. जबकि यह emotional mirroring है जो न्याय नहीं बल्क‍ि बदले की प्रतिक्रिया है. बदले की भावना इंसानी दिमाग की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है. खासकर तब जब उसे अन्याय महसूस होता है.  American Psychological Association के अनुसार बदले की भावना तीन चरणों में काम करती है. इसे Perceived injustice (अन्याय की अनुभूति), Moral outrage (नैतिक आक्रोश) और Desire for retribution (प्रतिशोध की इच्छा) में बांटा गया है. 

क्यों न्याय है जरूरी 

दिल्ली के वर‍िष्ठ अध‍िवक्ता एडवोकेट मनीष भदौर‍िया कहते हैं कि न्याय का उद्देश्य समाज में शांति, संतुलन और पुनर्वास होता है. हमारा दर्शन’ पाप से घृणा करो, पापी से नहीं’ वाला है. न्याय की पूरी प्रक्र‍िया इसी भावना पर आधारित है. लेकिन न्याय की धीमी प्रक्र‍िया लोगों को बदले की ओर प्रोत्साहित कर सकती है. शोध बताते हैं कि बदला लेने से लम्बे समय तक मानसिक शांति नहीं मिलती इससे उलट अपराधबोध और कुंठा जरूर बढ़ती है.

Stanford University के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग प्रतिशोध लेते हैं, वे घटना के बारे में बार-बार सोचते हैं और इसका उनके मानस‍िक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. वहीं न्याय क्रोध या पीड़ा में डूबकर नहीं बल्कि निष्पक्ष तथ्यों और सबूतों पर आधारित होता है. न्याय का उद्देश्य पुनर्स्थापना (restorative justice) होता है यानी पीड़ित को संतुलन देना, समाज को सुरक्षा देना और अपराधी को सुधारने का अवसर देना. 



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