शहर से 15 किमी दूर अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज ढाई किमी दूर स्थित आखिरी गांव मकवाल इन दिनों कहीं ज्यादा शांत है। गांव में बॉर्डर फिल्म के गाने…संदेशे आते हैं, हमें तरसाते हैं…गूंज रहे हैं। खेत किनारे, दुकानों पर डेरा जमाए बैठे लोगों के बीच चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा भारत की ओर से की गई कार्रवाई है।
हो भी क्यों न, सीमाओं पर कहीं किसी का बेटा, किसी का भाई लगातार पाकिस्तान की एक-एक गोलियों का जवाब दे रहा है। मकवाल के बच्चे-बच्चे को यह भरोसा है कि तवी और मां बावेवाली के आशीर्वाद से उन्हें कुछ नहीं होगा।
65 वर्षीय बोधराज, तरसीम लाल कहते हैं कि बड़े-बड़े युद्ध हुए हैं। तवी किनारे गांवों में गोले भी बरसे हैं। हमारे गांव पर तो नहीं गिरा कभी, पर पाकिस्तान का क्या भरोसा, कब क्या कर दे।
आसपास के तीन गांवों की महिलाओं और बच्चों को पास ही बनाए गए कैंप में शिफ्ट कराकर आए लंबरदार परवीन सिंह कहते हैं कि सतर्कता जरूरी है, इसीलिए हम लोगों ने परिवारों को शिफ्ट किया है।
घर के पुरुष गांव की पहरेदारी संभाले हैं। कुछ दूर आगे बढ़ने पर युवाओं की टोली संग हाथों में लाठी लिए मौजूद थे खजांच चंद मानो पाकिस्तान को ललकारते हुए कहते हैं, जो होना है एक बार हो जाए।
डर कैसा जी…जो होगा देख लेंगे
आगे बढ़ने पर कानों में भारत माता की जय और वंदे मातरम के बोल सुनाई देते हैं। खुड्डु सिंह बोलते हैं, हम तो रिफ्यूजी हैं, पर भारतीय हैं। सेना से सेवानिवृत्त मुल्क सिंह कहते हैं कि हमारे बच्चे पुंछ के पास सरहद पर मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। डर कैसा जी…, जो होगा देख लेंगे।
परिवार की चिंता थी, इसलिए उन्हें कैंप में छोड़ दिया है। अब तो हथियार भी बड़े-बड़े होते हैं, पहले छोटे होते थे, यहां नहीं गिरे कभी। कब यहां हमला हो जाए, क्या पता। पाकिस्तान को ललकारते हुए पीएम मोदी से वह मांग करते हैं कि रोज की किचकिच नहीं, जंग का डर नहीं, बस एक बार में जो होना है हो जाए।