50 से ज्यादा इस्लामिक मुल्क, लेकिन तुर्की और अजरबैजान के अलावा क्यों नहीं मिल रहा PAK को सीधा सपोर्ट? – why turkey and azerbaijan support pakistan after operation sindoor ntcpmj

पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया और पाकिस्तान के कई आतंकी कैंप ध्वस्त कर दिए. होना तो ये चाहिए था कि आतंक से खुद डील न कर पाने वाला देश इसके लिए भारत को शुक्रिया कहता, लेकिन हुआ इसका उलट. इस्लामाबाद आरोप लगाने लगा कि नई दिल्ली ने UN चार्टर का आर्टिकल 51 तोड़ा है. इस तनातनी के बीच तुर्की और अजरबैजान जैसे देश खुलकर पाकिस्तान से भाईचारा दिखाने लगे. जबकि ज्यादातर मुस्लिम बहुल देश मध्यमार्गी बने हुए हैं. जानें, कहां-क्या-क्यों बदल रहा?
क्या है यूएन चार्टर जिसे तोड़ने का आरोप पाकिस्तान लगा रहा
दरअसल पहलगाम में हुए आतंकी हमले के लगभग दो हफ्ते बाद भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया. इसमें टारगेटेड हमले करते हुए केवल आतंकी ठिकाने खत्म किए गए. लेकिन पाकिस्तान इसपर ही भड़क गया और यूएन के हवाले से धमकाने लगा. उसके अनुसार, देश ने यूएन चार्टर के आर्टिकल 51 को तोड़ा है, जिससे पाकिस्तानी नागरिकों की जान गई. इसपर भारत ने भी रिएक्शन देते हुए साफ किया कि ये नपी-तुली कार्रवाई थी और केवल आतंकी शिविरों को टारगेट किया गया.
आत्मरक्षा में एक्शन लेने का अधिकार
बात करें यूएन चार्टर की, तो ये सदस्य देशों के बीच शांति की बात करता है. लेकिन इसके आर्टिकल 51 में साफ है कि किसी भी देश को आत्मरक्षा का पूरा हक है. यानी अगर दुश्मन किसी देश पर हमला करे तो यूएन नहीं कहता कि आप चुपचाप रहें. सीधे शब्दों में यह आर्टिकल आक्रामकता का जवाब देने पर रोक नहीं लगाता. यानी हमने जो किया, अपने डिफेंस में किया. लिहाजा पाक का ये बयान बिल्कुल बचकाना है.
क्यों बाकी देश चुप साधे हुए
कई बार गलत इतना ज्यादा गलत होता है कि उसका साथ देने से बहुत से हमदर्द भी बचते हैं. पाकिस्तान की गलतियां इतनी ज्यादा हैं कि इस्लामिक मुल्क भी उसे सही नहीं ठहरा पा रहे. यहां तक कि वो शांति की बात कर रहे हैं लेकिन पाकिस्तान का पक्ष लेने से कतरा रहे हैं. दरअसल, मुस्लिम देशों का रुख केवल धार्मिक आधार पर तय नहीं होता, बल्कि औरों की तरह वे भी कूटनीतिक और आर्थिक फायदे देखते हैं.
एशिया में पाकिस्तान लंबे समय से खुद को धर्म के रखवाले की तरह दिखाता रहा. इसी वजह से कई देशों ने उसकी मदद भी की. लेकिन उसका रवैया अपनी ही थाली में छेद करने का रहा. वो अफगानिस्तान और ईरान में लगातार दखलअंदाजी करता रहा. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) पाकिस्तान को भारी फंडिंग करते रहे लेकिन अब वे भी इस देश के साथ एक मंच पर खड़े होने में सावधानी रखते हैं. इन दोनों ही देशों के साथ भारत के रिश्ते फिलहाल ज्यादा मजबूत हो चुके. ऐसे में वे पाकिस्तान जैसे अस्थिर मुल्क की वजह से कुछ दांव पर नहीं लगाना चाहते.
दूसरी बात, कश्मीर मसले पर द्विपक्षीय बात की बजाए पाकिस्तान ने आतंकी गुटों की मदद लेनी शुरू कर दी. उसकी अपनी जमीन से जैश, लश्कर जैसे आतंकी संगठन ऑपरेट होते रहे. ऐसे में उसका रिकॉर्ड इतना दागदार है कि कोई देश उसके सीधे पक्ष में नहीं आ रहा.
फिर तुर्की और अजरबैजान को इतनी सहानुभूति क्यों
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोगन को लंबे वक्त से मॉडर्न खलीफा बनने की धुन रही. वे चाहते हैं कि ऑटोमन एंपायर की तरह उनका देश फिर से इस्लामिक दुनिया का राजा बने. पाकिस्तान उनके इस नैरेटिव को सपोर्ट करता है. इसी सोच के तहत तुर्की के नेता कश्मीर मुद्दे को हवा देते रहे. पटे में टांग अड़ाने की ये सनक इस हद तक है कि वे यूएन असेंबली में भी कश्मीर पर बोल चुके, जबकि ये शुद्ध तौर पर भारत और पाकिस्तान का विवाद है.
अजरबैजान की बात थोड़ी अलग है. वो सीधे तौर पर पाकिस्तान का सपोर्टर नहीं, लेकिन तुर्की के काफी करीब है. दोनों देशों की विदेश नीति में, वन नेशन-टू स्टेट की बात होती है. भाषा, कल्चर और खानपान में भी दोनों लगभग एक से हैं. पाकिस्तान से उसका जुड़ाव कोविड के दौर में हुआ, जब साल 2020 में अजरबैजान ने आर्मेनिया के खिलाफ युद्ध छेड़ा. इस्लामाबाद तब खुलकर अजरबैजान के पक्ष में आ गया. यहां तक कि उसे सैन्य सपोर्ट देने तक के वादे करने लगा. इससे दोनों देश कुछ जुड़े. साथ ही तुर्की उनके बीच पुल की तरह है.